तेनाली रामा की कहानियां: तेनालीराम का न्याय in Hindi | Tenali Raman ka Nyay Story in Hindi
बहुत समय पहले, कृष्णदेव राय विजयनगर के प्रसिद्ध दक्षिण भारतीय राज्य के राजा थे। उसके राज्य में सब सुखी थे। अपने लोगों के हित में निर्णय लेते समय सम्राट कृष्णदेव अक्सर बुद्धिमान तेनालीराम की मदद लिया करते थे। तेनालीराम का दिमाग इतना तेज था कि वह किसी भी समस्या को पल भर में हल कर सकता था।
एक दिन राजा कृष्णदेव के दरबार में कोई रोता हुआ आया। उसने कहा, “महाराज! मैं पास में ही नामदेव की हवेली में काम करता हूँ। मेरे मालिक ने मुझ पर झूठा इलज़ाम लगाया है। मैं निर्दोष हूँ।” राजा कृष्णदेव ने उससे पूछा, “आखिर तुमने क्या किया?”
नामदेव ने राजा को बताया कि मैं और मेरे स्वामी करीब पांच दिन पहले हवेली से पंचमुखी शिव मंदिर गए थे। फिर एक बहुत भयानक तूफान आने लगा। हम दोनों मंदिर के पिछले हिस्से में कुछ देर रुके। तब मैंने पहली बार लाल मखमल जैसा कपड़ा देखा। मैंने अपने मालिक से अनुमति मांगने के बाद इसे लिया। देखा कि यह एक छोटी थैली था जिसके अंदर दो हीरे थे।
कानून कहता है कि चूंकि वे हीरे मंदिर के पिछले हिस्से में गिरे थे, इसलिए वे राज्य के हैं। लेकिन जब मेरे मालिक ने हीरा देखा तो उसका मन बदल गया। उसने मुझसे कहा कि अगर हम किसी को नहीं बताएंगे तो हमें एक-एक हीरा मिलेगा। मुझे भी कुछ चाहिए था, इसलिए मैं यह काम करने को तैयार हो गया।
हवेली पहुँचते ही जब मैंने मालिक से मेरा हीरा माँगा तो उसने मुझे देने से मना कर दिया। मैंने सोचा कि जैसे ही मुझे हीरा मिल जाएगा, मैं इसे बेच दूंगा, नौकरी छोड़ दूंगा और अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर दूंगा, क्योंकि मालिक ने मेरे साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। नामदेव ने दुखी स्वर में महाराज से कहा कि उन्होंने दो दिन तक मालिक को हीरा देने के लिए मनाने की कोशिश की थी, लेकिन मालिक ने साफ मना कर दिया था। अब आप मेरे साथ न्याय करो।
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जब सम्राट ने नामदेव की बात सुनी तो उन्होंने अपने सैनिकों को उन्हें अपने दरबार में लाने के लिए भेजा। जब वे वहां पहुंचे तो महाराज कृष्णदेव ने उनसे तुरंत हीरे के बारे में पूछा। जवाब में उसने उनसे कहा कि यह आदमी झूठ बोल रहा है। हाँ, हमें उस दिन मंदिर के पिछले भाग में एक हीरा अवश्य मिला था। मैंने उनसे कहा कि उन हीरों को खजाने के कमरे में ले जाओ। फिर दो दिन बाद जब मैंने उससे हीरे जमा करने की रसीद मांगी तो वह घबरा गया और मेरे घर से सीधे आपके पास आ गया। वह तभी से आप को यह सब झूठ कह रहा है।
तो, महाराज ने नामदेव के मालिक से पूछा कि क्या आपने उन्हें अन्य लोगों के सामने हीरा दिया था।
नामदेव के मालिक ने कहा, “हाँ, महाराज, मैंने अपने तीन नौकरों के सामने उसे हीरों की एक पोटली दिया था।”
यह पता चलने पर राजा कृष्णदेव ने उन तीनों को बुलवाया। नौकरों ने जैसे ही दरबार में पहुंचकर नामदेव के खिलाफ सबूत पेश किए। उन्होंने कहा कि उनके स्वामी ने हीरा उनके सामने ही नामदेव को दे दिया था।
इसलिए, जब महाराज दरबार से बाहर निकले, तो उन्होंने कुछ समय के लिए अपने मंत्रियों से अकेले में बात की। पहले तो राजा कृष्णदेव ने कहा कि मैं नामदेव की बात से सहमत हूं। उनके बाकी मंत्रियों ने उनसे कहा, “महाराज, हम उन गवाहों की उपेक्षा नहीं कर सकते।” फिर जब राजा कृष्णदेव ने तेनालीराम की ओर देखा तो उन्होंने हाथ के इशारे से उससे पूछा कि वह क्या कहना चाहता है। तेनालीराम ने मुस्कराते हुए कहा, “अब मैं पता लगाऊंगा कि क्या सच है और क्या नहीं।” आप लोगों को बस थोड़ा सा इंतजार करना है।
तेनालीराम की बात सुनकर राजा ने ठीक वैसा ही किया। अन्य मंत्रियों ने भी पर्दे के पीछे से राजा को देखा। अब तेनालीराम ने पहले गवाह को बुलाकर हीरे के बारे में पूछा। उसने वही पुरानी बात का जवाब दिया। तब तेनालीराम ने पूछा, “मुझे उन हीरों के बारे में बताओ।” क्या आप इस कागज़ पर उनका चित्र बना सकते हैं? उस गवाह ने कहा कि वह व्यस्त था, इसलिए हम नहीं जानते कि वह कैसा दिखता था।
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तेनालीराम ने पहले गवाह को दूसरे कमरे में जाने को कहा और फिर दूसरे गवाह से वही सवाल किया। “मैंने उन दो हीरों को देखा,” बोलने वाले दूसरे व्यक्ति ने कहा। फिर उसने कुछ अजीबोगरीब चित्र बनाए।
फिर तीसरा गवाह तेनाली के सामने आया। उसने कहा कि उसने हीरे नहीं देखे क्योंकि वे कागज में लिपटे हुए थे।
राजा, जो एक पर्दे के पीछे छिपा हुआ था, ने तीनों गवाहों की बातें सुनीं। सभी के कहने से यह स्पष्ट हो गया कि नामदेव सच कह रहा था और उसका मालिक बातें बना रहा था। तीनों गवाहों को पता था कि उनका झूठ पकड़ा गया है। सभी ने महाराज के पैर पकड़ लिए और उनसे कहा कि उन्हें खेद है क्योंकि हमारे स्वामी ने हमसे झूठ बोलने के लिए बोला था। अगर हमने ऐसा नहीं किया होता तो वे हमें बंद कर देते।
अब, राजा कृष्णदेव सीधे दरबार में गए और उनसे नामदेव के मालिक को गिरफ्तार करने और उसके घर की तलाशी लेने को कहा। कुछ देर बाद सिपाहियों ने उसके घर जाकर हीरों को ढूंढ निकाला। फिर क्या था? महाराज ने हीरे ले लिए और उस पर 30,000 सोने के सिक्कों का जुर्माना लगाया। उसमें से राजा ने नामदेव को 10,000 स्वर्ण मुद्राएँ दीं।
कहानी से सीखो
इस कहानी से आप दो बातें सीख सकते हैं। सबसे पहले, आपको किसी को धोखा नहीं देना चाहिए, क्योंकि धोखा देने से हमेशा बुरे काम होते हैं। दूसरी सीख यह है कि अगर आप होशियार हैं तो किसी भी झूठ का पता लगाया जा सकता है।
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तेनाली रामा की कहानियां: तेनालीराम का न्याय in English | Tenali Raman ka Nyay Story in English
A long time ago, Krishnadeva Raya was the king of the famous South Indian kingdom of Vijayanagara. Everyone was happy in his kingdom. Emperor Krishnadeva often took the help of the wise Tenali Rama while taking decisions in the interest of his people. Tenaliram’s mind was so sharp that he could solve any problem in a jiffy.
One day someone came crying in the court of King Krishnadev. He said, “Your Majesty! I work in Namdev’s haveli nearby. My master has falsely accused me. I am innocent.” King Krishnadeva asked him, “What did you do after all?”
Namdev told the king that my master and I had gone from the haveli to the Panchmukhi Shiva temple about five days ago. Then a terrible storm started coming. We both stayed for some time in the back part of the temple. Then for the first time I saw a cloth like red velvet. I took it after asking permission from my boss. Saw that it was a small bag with two diamonds inside.
The law says that since the diamonds fell in the back of the temple, they belong to the state. But when my master saw the diamond, he changed his mind. He told me that if we don’t tell anyone, we will get a diamond each. I also wanted something, so I agreed to do this work.
On reaching the haveli, when I asked the owner for my diamond, he refused to give it to me. I thought that as soon as I got the diamond, I would sell it, quit my job and start my own business, because the owner didn’t treat me well. Namdev told Maharaj in a sad voice that he had tried for two days to persuade the owner to give him the diamond, but the owner flatly refused. Now you do justice to me.
When the emperor heard of Namdev, he sent his soldiers to bring him to his court. When he reached there, Maharaj Krishnadeva immediately asked him about the diamond. In response he told them that this man was lying. Yes, we did find a diamond that day at the back of the temple. I told him to take those diamonds to the treasure room. Then two days later, when I asked him for the receipt for depositing the diamonds, he got nervous and came straight from my house to you. He has been telling you all these lies since then.
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So, Maharaj asked Namdev’s master whether you had given him the diamond in front of other people.
Namdev’s master said, “Yes, Maharaj, I gave him a bundle of diamonds in front of my three servants.”
On knowing this, King Krishnadev called all three of them. The servants presented evidence against Namdev as soon as they reached the court. He said that his master had given the diamond to Namdev in front of him.
Therefore, when the Maharaja left the court, he spoke privately with his ministers for some time. At first King Krishnadev said that I agree with Namdev. The rest of his ministers said to him, “Your Majesty, we cannot ignore those witnesses.” Then when King Krishnadeva looked at Tenaliram, he asked him with a hand gesture what he wanted to say. Tenaliram said with a smile, “Now I will find out what is true and what is not.” You guys just have to wait a little bit.
The king did exactly the same after listening to Tenaliram. Other ministers also saw the king from behind the curtain. Now Tenaliram called the first witness and asked him about the diamond. He replied the same old thing. Then Tenaliram asked, “Tell me about those diamonds.” Can you draw them on this paper? That witness said he was busy, so we don’t know what he looked like.
Tenaliram asked the first witness to go to another room and then asked the second witness the same question. “I saw those two diamonds,” said the second person speaking. Then he made some strange pictures.
Then the third witness appeared before Tenali. He said that he did not see the diamonds because they were wrapped in paper.
The king, who was hiding behind a curtain, listened to the three witnesses. It became clear from everyone’s statement that Namdev was telling the truth and his master was making things up. All three witnesses knew that their lies had been caught. Everyone held Maharaj’s feet and told him that he was sorry because our master told us to lie. If we had not done so, they would have locked us up.
Now, King Krishnadeva went directly to the court and asked him to arrest Namdev’s master and search his house. After some time the soldiers went to his house and found the diamonds. Then what was left? The Maharaja took the diamonds and imposed a fine of 30,000 gold coins on him. Out of that the king gave 10,000 gold coins to Namdev.
Moral from the story
You can learn two things from this story. First of all, you should not cheat anyone, because cheating always leads to bad things. The second lesson is that any lie can be detected if you are smart.