श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की कहानी – Krishna Sudama Story in Hindi
गुरुकुल के दिन – सच्ची मित्रता की शुरुआत
प्राचीन समय की बात है।
संदीपनि मुनि के आश्रम में दो बालक साथ पढ़ते थे —
एक थे द्वारका के राजकुमार श्रीकृष्ण,
और दूसरे थे गरीब ब्राह्मण पुत्र सुदामा।
दोनों साथ बैठते, साथ पढ़ते, साथ ही भोजन करते।
कृष्ण को सुदामा की सरलता और विनम्रता बहुत भाती थी।
सुदामा भी कृष्ण को अपना सच्चा मित्र मानते थे।
एक दिन जब दोनों जंगल से लकड़ियाँ ला रहे थे,
अचानक तेज़ वर्षा शुरू हो गई।
वे एक पेड़ के नीचे छिप गए और ठंड में काँपते हुए भी एक-दूसरे को ढाँक लिया।
कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा —
“सुदामा, जब मित्र साथ हो, तो कोई तूफ़ान भी डरा नहीं सकता।”
अलगाव और जीवन की कठिनाइयाँ
गुरुकुल की शिक्षा पूरी होने के बाद दोनों अपने-अपने जीवन में लौट गए।
कृष्ण द्वारका लौटकर राजा बने,
जबकि सुदामा एक निर्धन ब्राह्मण जीवन जीने लगे।
सुदामा की पत्नी अत्यंत पतिव्रता थी।
वह अक्सर कहती —
“स्वामी, आपका बचपन का मित्र द्वारका का राजा है।
कृपया उनके पास जाइए, शायद वे आपकी कुछ सहायता करें।”
सुदामा मुस्कुराते हुए उत्तर देते —
“मित्रता सहायता के लिए नहीं होती, केवल प्रेम के लिए होती है।”
पर एक दिन पत्नी ने आग्रह किया,
और सुदामा कुछ चिउड़े (पोहे) एक छोटे से कपड़े में बाँधकर चल पड़े।
द्वारका का प्रवेश
जब सुदामा द्वारका पहुँचे,
उन्होंने देखा — सोने की गलियाँ, महलों की चमक,
और हर ओर भव्यता का साम्राज्य।
वे संकोच करते हुए राजमहल के द्वार पर पहुँचे।
द्वारपालों ने पूछा,
“कौन हैं आप?”
सुदामा बोले,
“मैं श्रीकृष्ण का पुराना मित्र हूँ, गुरुकुल का साथी।”
जैसे ही यह बात श्रीकृष्ण तक पहुँची,
वे नंगे पाँव दौड़ पड़े —
“सुदामा! मेरे सखा सुदामा आए हैं!”
श्रीकृष्ण की आत्मीयता
कृष्ण ने सुदामा को गले लगा लिया,
उनके पैरों को अपने हाथों से धोया,
और प्रेम से उनके चरणों का जल अपने माथे पर लगाया।
सुदामा रो पड़े —
“प्रभु! यह आप क्या कर रहे हैं?”
कृष्ण ने मुस्कुराकर कहा —
“आज मेरा सौभाग्य जाग उठा है,
मेरे सखा मेरे घर आए हैं।”
चिउड़ों का प्रसाद
कृष्ण ने कहा —
“सखा! मेरे लिए क्या लाए हो?”
सुदामा संकोच में बोले —
“कुछ नहीं प्रभु, बस थोड़ा-सा चिउड़ा, जो मेरी पत्नी ने भेजा है।”
कृष्ण ने वह चिउड़े अपने हाथ में लिए,
और एक-एक दाना प्रेम से मुख में रखा।
पहले ही निवाले के साथ वे बोले —
“सुदामा, तुम्हारा घर अब कभी निर्धन नहीं रहेगा।”
सुदामा का हृदय परिवर्तन
सुदामा ने कोई दान नहीं माँगा,
वे केवल प्रेम और संतोष लेकर लौट चले।
पर जब अपने घर पहुँचे,
तो देखा —
उनका कुटिया अब स्वर्ण महल में बदल चुका था।
पत्नी रेशमी वस्त्रों में सजी थी,
और वातावरण में दिव्य सुगंध फैली थी।
सुदामा भाव-विभोर हो उठे —
“प्रभु! आपने बिना माँगे सब दे दिया,
अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए।”
आध्यात्मिक अर्थ
- सुदामा की निर्धनता “आध्यात्मिक विनम्रता” का प्रतीक है।
- कृष्ण का प्रेम “भगवान का भक्ति के प्रति उत्तर” है।
- यह कथा सिखाती है कि सच्ची भक्ति में माँग नहीं होती, केवल प्रेम होता है।
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जीवन की शिक्षा (Moral of the Story)
- सच्ची मित्रता में लोभ नहीं, केवल निःस्वार्थ भाव होता है।
- भगवान को भक्ति और प्रेम सबसे प्रिय हैं, धन नहीं।
- जो निस्वार्थ भाव से देता है, उसे ईश्वर सब कुछ लौटाते हैं।
- सच्चे मित्र कभी अलग नहीं होते — चाहे संसार कितना भी बदल जाए।
The Story of Krishna and Sudama – A Tale of True Friendship and Devotion

Days in the Gurukul
In the ashram of Sage Sandipani studied two boys —
Prince Krishna of Dwarka, and poor Brahmin boy Sudama.
They shared food, laughter, and love.
One stormy night in the forest, they sheltered each other under a tree.
Krishna said gently,
“When friendship is true, even storms bow down.”
Separation and Struggles
Years passed.
Krishna became King of Dwarka.
Sudama lived in poverty but remained content and devoted.
His wife once said,
“Go meet your childhood friend Krishna. He will surely help us.”
Sudama replied,
“True friendship is not for seeking help, it’s for sharing love.”
At last, he agreed, carrying a small pouch of poha (flattened rice) for Krishna.
Arrival in Dwarka
Sudama was amazed to see the golden city of Dwarka.
At the palace gates, he humbly said,
“I am Krishna’s old friend, Sudama.”
When Krishna heard this,
He rushed barefoot, embracing him with tears in His eyes —
“My dear friend! You’ve come at last!”
The Meeting of Hearts
Krishna washed Sudama’s feet with His own hands,
and wiped them with His royal garment.
Sudama wept, overwhelmed by divine love.
Krishna said,
“No wealth is greater than the love of a true friend.”
The Gift of Poha
Krishna smiled and asked,
“What have you brought for me, my friend?”
Sudama hesitated and offered the small bag.
Krishna took a handful of poha and ate it lovingly.
With the first bite, the Lord declared,
“Sudama, your home shall never know poverty again.”
The Miracle of Love
Sudama returned home without asking for anything.
But when he reached, his hut had turned into a golden palace.
His wife greeted him in shining clothes.
He bowed in gratitude and whispered —
“Krishna, You gave me everything without even asking.”
Spiritual Meaning
- Sudama’s poverty symbolizes humility and pure devotion.
- Krishna’s response shows that true love moves the Divine itself.
- Real wealth is not in gold, but in a heart full of gratitude.
Moral Lessons
- True friendship is unconditional.
- God values love, not luxury.
- Those who give with love receive more than they imagine.
- A pure heart is the richest treasure.
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FAQs
Q1: सुदामा कौन थे?
वे भगवान श्रीकृष्ण के बचपन के मित्र थे, जो निर्धन ब्राह्मण थे।
Q2: सुदामा ने कृष्ण को क्या भेंट दी थी?
सुदामा ने अपने घर से लाए थोड़े से चिउड़े (पोहे) भेंट किए थे।
Q3: इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है?
सच्चा प्रेम और भक्ति बिना माँग के होती है। भगवान भाव देखते हैं, वस्तु नहीं।