श्रीकृष्ण और प्रलम्बासुर की कथा – Krishna Pralambasura Vadh Story in Hindi
गोकुल में हँसी और खेल का उत्सव
गोकुल की सुबह सुनहरी धूप से चमक रही थी।
नदी किनारे और हरे-भरे वन में ग्वालबाल अपनी गाय-बछड़ों के साथ खेलने निकले।
कृष्ण बांसुरी बजा रहे थे और बलराम बच्चों के साथ हँसी-मजाक कर रहे थे।
पूरे वातावरण में आनंद और उल्लास था।
एक ग्वालबाल बोला—
“कृष्ण! आज कोई नया खेल खेलें?”
कृष्ण मुस्कुराए—
“हाँ, आज हम दो-दो टीमें बनाएंगे। जो हारेगा, वह विजेता को अपने कंधों पर उठाकर दौड़ाएगा।”
सब बच्चे खुशी से चिल्लाए—
“वाह! यह खेल तो बहुत मज़ेदार होगा।”
कंस की नई चाल
लेकिन मथुरा में कंस चैन से नहीं बैठा था।
उसने अब तक भेजे पुतना, बकासुर, अघासुर और धेनुकासुर सबको खो दिया था।
अब उसने एक और असुर भेजा — प्रलम्बासुर।
यह असुर बलशाली होने के साथ-साथ छल और भेष बदलने में माहिर था।
कंस ने आदेश दिया—
“जा प्रलम्ब, उस कृष्ण और बलराम को धोखे से मार डाल।”
प्रलम्बासुर का छद्म रूप
प्रलम्बासुर ने ग्वालबाल का रूप धारण किया और बच्चों में मिल गया।
वह भी हँसते हुए बोला—
“अरे, मुझे भी खेल में शामिल करो।”
कृष्ण ने उसकी आँखों में देखकर कुछ संदेह किया, लेकिन मुस्कुराकर बोले—
“ठीक है, पर याद रखना—हमारे खेल में नियम सबके लिए समान हैं।”
ग्वालबालों का खेल शुरू
दो टीमें बनीं।
एक का नेतृत्व कृष्ण कर रहे थे और दूसरी का बलराम।
खेल शुरू हुआ। बच्चे दौड़ते, हँसते और कभी गिरते तो कभी फिर उठ जाते।
गोकुल का वातावरण गूंज उठा—“जय! जय!”
खेल के नियम के अनुसार, हारी हुई टीम का बच्चा विजेता को अपने कंधे पर बैठाकर दौड़ाता।
यही मौका था जिसका इंतजार प्रलम्बासुर कर रहा था।
असुर की चालाक योजना
खेल में वह जान-बूझकर हार गया और बोला—
“आओ बलराम, मैं तुम्हें अपने कंधे पर बैठा लेता हूँ।”
बलराम हँसते हुए उसके कंधे पर बैठ गए।
प्रलम्बासुर धीरे-धीरे दौड़ता हुआ बच्चों से दूर जाने लगा।
एक ग्वालबाल ने चिल्लाकर कहा—
“अरे, तुम बहुत दूर जा रहे हो, लौट आओ।”
कृष्ण ने शांत स्वर में कहा—
“चिंता मत करो। सब ठीक होगा।”
संकट का क्षण
जैसे ही प्रलम्बासुर बच्चों से बहुत दूर पहुँचा, उसने अपना असली रूप धारण कर लिया।
वह एक विशालकाय राक्षस बन गया।
उसकी आँखें अंगारों की तरह लाल, दाँत तलवार जैसे नुकीले और शरीर पहाड़ जैसा बड़ा।
उसने बलराम को कसकर पकड़ लिया और जोर से गरजा—
“अब मैं तुम्हें यहीं मार डालूँगा!”
बलराम का पराक्रम
बलराम पहले तो चुपचाप उसे देखते रहे, फिर हँसकर बोले—
“अरे मूर्ख! तूने सोचा था कि छल से हमें हरा लेगा? अब देख मेरी शक्ति।”
बलराम ने अपनी मुट्ठियाँ कस लीं और प्रलम्बासुर के मस्तक पर जोरदार प्रहार किया।
असुर कराहते हुए जमीन पर गिर पड़ा।
उसका विशाल शरीर काँपता रहा और अंत में वह नष्ट हो गया।
ग्वालबालों की जय-जयकार
बलराम सुरक्षित लौटे तो सब ग्वालबाल खुशी से चिल्लाए—
“जय बलराम! जय श्रीकृष्ण!”
कृष्ण ने बलराम को गले लगाकर कहा—
“भैया, आपने फिर गोकुल को सुरक्षित किया। आप हमारे लिए ढाल हो।”
गोकुल का वातावरण फिर से हँसी और उत्सव से भर गया।
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आध्यात्मिक महत्व
- प्रलम्बासुर = छल, कपट और दंभ का प्रतीक।
- जीवन में धोखा देने वाले और छल करने वाले कभी सफल नहीं होते।
- सच्चाई और भक्ति से असत्य का अंत होता है।
जीवन की सीख
- मित्रता और एकता सबसे बड़ी शक्ति है।
- असत्य और कपट चाहे कितना भी चतुर क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है।
- साहस और सच्चाई से हर संकट पर विजय मिलती है।
The Story of Krishna and Pralambasura – Krishna Kills the Demon Pralambasura

Playful Gokul
Morning in Gokul was bright with golden sunlight.
The cowherd boys played joyfully with their calves.
Krishna played His flute, and Balarama laughed along with the boys.
Krishna proposed a new game:
“Let’s form two teams. The losers will carry the winners on their shoulders.”
The boys cheered happily.
Kansa’s New Plan
In Mathura, Kansa grew restless.
He had already lost Putana, Bakasura, Aghasura, and Dhenukasura.
So he sent Pralambasura, a demon skilled in disguise, with the order:
“Kill Krishna and Balarama by deceit!”
Pralambasura’s Disguise
The demon disguised himself as a charming cowherd boy and joined the children.
Krishna, sensing something strange, still allowed him to play.
The Game Begins
Two teams were formed—Krishna leading one and Balarama the other.
The game was filled with laughter and cheers.
Losers carried the winners on their shoulders.
Pralambasura was waiting for this very moment.
The Demon’s Trick
He deliberately lost and carried Balarama on his shoulders.
Slowly, he moved farther and farther away into the forest.
Krishna calmly watched, knowing what was to come.
The Moment of Danger
Once far away, Pralambasura revealed his true form—
a gigantic demon with fiery eyes, sharp fangs, and a monstrous body.
He roared:
“Now I shall kill you, Balarama!”
Balarama’s Valor
Balarama laughed and said,
“Foolish demon! You thought deceit would win? Feel my strength now.”
He struck the demon’s head with a mighty blow.
Pralambasura fell to the ground, shaking violently, and finally perished.
Victory and Joy
The boys cheered with joy when Balarama returned safely.
Krishna embraced Him and said,
“Brother, once again you have protected us all.”
Gokul rejoiced with laughter and celebration.
Spiritual Meaning
- Pralambasura symbolizes deceit, arrogance, and hypocrisy.
- Deceit may appear clever, but truth and devotion always prevail.
Moral
- Unity and friendship are the greatest strength.
- Deceit and falsehood always meet their end.
- Courage and truth bring victory in every situation.
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FAQs
Q1: प्रलम्बासुर कौन था?
वह एक असुर था जो ग्वालबाल के रूप में आकर छल से कृष्ण और बलराम को मारना चाहता था।
Q2: प्रलम्बासुर का अंत कैसे हुआ?
जब उसने बलराम को दूर ले जाकर मारने की कोशिश की, तब बलराम ने अपने प्रहार से उसका वध कर दिया।
Q3: इस कथा से क्या शिक्षा मिलती है?
छल और कपट का अंत निश्चित है, जबकि सच्चाई और भक्ति सदैव विजयी होते हैं।