भक्त ध्रुव की कथा in Hindi | Dhruv Ki Kahani in Hindi
एक बार उत्तानपाद नाम का एक राजा था, और उसकी दो रानियाँ थीं। एक रानी का नाम सुनीति और दूसरी रानी का नाम सुरुचि था। बड़ी रानी सुनीति थी, और छोटी रानी सुरुचि थी। रानी सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव और रानी सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था। राजा उत्तानपाद को छोटी रानी सुरुचि अधिक पसंद थी क्योंकि वह बहुत सुंदर थी, लेकिन रानी सुरुचि को अपनी सुंदरता पर बहुत गर्व था। वहीं, सुनीति छोटी रानी से काफी अलग थी। रानी सुनीति बड़ी समझदार और समझदार थी। जब राजा ने सुरुचि से अधिक प्रेम किया तो रानी सुनीति को दुःख हुआ। इस कारण वह अपना अधिकांश समय प्रभु की आराधना में व्यतीत करती थी।
एक दिन सुनीति का पुत्र ध्रुव अपने पिता राजा उत्तानपाद के पास गया और उनकी गोद में बैठ गया। जब छोटी रानी सुरुचि आई तब धुर्व को अपने पिता की गोद में बैठकर खेल रहा होता है । जब रानी सुरुचि ने ध्रुव को राजा की गोद में बैठे देखा तो उन्हें क्रोध आया।
रानी ने ध्रुव को राजा की गोद से उतार दिया और कहा, “तुम राजा की गोद में नहीं बैठ सकते। राजा की गोद और सिंहासन पर बैठने का अधिकार केवल मेरे पुत्र उत्तम को है।” जब ध्रुव ने यह सुना तो उसे बहुत बुरा लगा। ध्रुव चला गया और रोते हुए अपनी माँ के पास गया। ध्रुव को रोता देखकर माँ को बहुत चिंता हुई तो उन्होंने उससे पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो। ध्रुव ने रोते हुए सारी बात कह दी। मां ने जब ध्रुव की बात सुनी तो उनकी आंखों में आंसू भर आए। सुनीति ने ध्रुव से कहा, “भगवान की पूजा में बहुत शक्ति है। यदि आप सच्चे मन से पूजा करते हैं, तो भगवान आपको अपनी गोद और अपना सिंहासन दोनों देंगे। “अपनी मां की बात सुनकर ध्रुव ने निश्चय किया कि वह सचमुच भगवान की पूजा करेगा।
ध्रुव अपना महल छोड़कर जंगल में भगवान से प्रार्थना करने चला गया। रास्ते में उनकी भेंट ज्ञानी नारद जी से हुई। जब ध्रुव जंगल की ओर जा रहा था तो नारद ने उसे रोक लिया। “तुम जंगल क्यों जा रहे हो?” नारद ने पूछा। ध्रुव ने उससे कहा कि वह भगवान की भक्ति और ध्यान करेगा। ध्रुव की बात सुनकर नारद ने उसे वापस महल भेजने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन ध्रुव ने उसकी एक न सुनी।
तब नारद ने ध्रुव से “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का उच्चारण करने के लिए कहा। तत्पश्चात् ध्रुव वन में चला गया और बार-बार इस मन्त्र का उच्चारण करने लगा। दूसरी ओर नारद ने ध्रुव के बारे में महाराज उत्तानपाद से बात की। जब महाराज ने पुत्र के बारे में सुना तो उन्हें चिंता होने लगी। उन्होंने ध्रुव को वापस लाने की कोशिश की, लेकिन नारद ने उन्हें बताया कि ध्रुव प्रार्थना में व्यस्त हैं और अभी वापस नहीं आएंगे।
दूसरी ओर, ध्रुव कोकठोर तपस्या में लगे रहे । ध्रुव कई दिनों और महीनों तक तपस्या करता रहा। इस बीच, भगवान हरि ध्रुव के सामने आए क्योंकि वह ध्रुव के प्रति समर्पित भाव होने से खुश थे। भगवान हरि ने ध्रुव को वरदान देते हुए कहा, “हम तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हैं। तुम्हें राजसुख मिलेगा। साथ ही, तुम्हारा नाम और तुम्हारी भक्ति हमेशा के लिए जानी जाएगी” । तब भगवान ने ध्रुव को महल में जाने को कहा। ध्रुव भी भगवान को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और उन्हें प्रणाम करके महल की ओर चल पड़ा। जब पुत्र वापस महल में आया तो राजा उसे देखकर प्रसन्न हुआ और उसे सारा राज्य दे दिया। भगवान हरि ने भक्त ध्रुव को एक ऐसा वरदान दिया जिससे उसका नाम हमेशा के लिए अमर हो गया। आज भी उन्हें “ध्रुव तारे” के रूप में याद किया जाता है, जो आकाश का सबसे चमकीला तारा है।
कहानी से सीखें
इस कहानी से आप सीख सकते हैं कि यदि आप धैर्य और सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं, तो आपकी मनोकामना पूरी होगी।
भक्त ध्रुव की कथा in English | Dhruv Ki Kahani in English
Once upon a time there was a king named Uttanpad, and he had two queens. One queen’s name was Suniti and the other queen’s name was Suruchi. The elder queen was Suniti, and the younger queen was Suruchi. Queen Suniti’s son’s name was Dhruv and Queen Suruchi’s son’s name was Uttam. King Uttanpad liked the younger queen Suruchi more because she was very beautiful, but Queen Suruchi was very proud of her beauty. At the same time, Suniti was quite different from Chhoti Rani. Queen Suniti was very intelligent and sensible. Queen Suniti felt sad when the king loved Suruchi more. That’s why she used to spend most of her time in the worship of the Lord.
One day Suniti’s son Dhruva went to his father King Uttanpad and sat on his lap. Dhruv is playing on his father’s lap when the little queen Suruchi comes. When Queen Suruchi saw Dhruv sitting on the king’s lap, she got angry.
The queen took Dhruva off the king’s lap and said, “You cannot sit on the king’s lap. Only my son Uttam has the right to sit on the king’s lap and the throne.” When Dhruv heard this, he felt very bad. Dhruv left and went to his mother crying. Mother was very worried seeing Dhruv crying so she asked him why you are crying. Dhruv told the whole thing while crying. When the mother listened to Dhruv, her eyes filled with tears. Suniti said to Dhruva, “There is great power in worshiping the Lord. If you worship with a true heart, the Lord will give you both his lap and his throne.” After listening to his mother, Dhruva decided that he was indeed worshiping the Lord. Will worship
Dhruva left his palace and went to the forest to pray to God. On the way, he met the wise Narad ji. When Dhruva was going towards the forest, Narad stopped him. “Why are you going to the woods?” Narad asked. Dhruva told him that he would worship and meditate on the Lord. After listening to Dhruva, Narad tried to persuade him to send him back to the palace, but Dhruva did not listen to him.
Then Narada asked Dhruva to chant the mantra “Om Namo Bhagavate Vasudevaya”. After that Dhruv went to the forest and started chanting this mantra again and again. On the other hand Narad spoke to Maharaj Uttanpad about Dhruva. When Maharaj heard about the son, he started worrying. They tried to bring Dhruva back, but Narada told them that Dhruva was busy in prayer and would not return yet.
On the other hand, Dhruva remained engaged in severe penance. Dhruva did penance for many days and months. Meanwhile, Lord Hari appeared before Dhruva as he was pleased with Dhruva’s devotion towards him. Lord Hari granted a boon to Dhruva saying, “We are very pleased with your penance. You will get royal happiness. Also, your name and your devotion will be known forever”. Then God asked Dhruva to go to the palace. Dhruv was also very happy to see God and after saluting him went towards the palace. When the son returned to the palace, the king was pleased to see him and gave him the entire kingdom. Lord Hari gave such a boon to the devotee Dhruva that his name became immortal forever. Even today he is remembered as “Dhruv Taare”, the brightest star in the sky.
Moral from the story
You can learn from this story that if you pray patiently and with a sincere heart, your wishes will come true.