धर्म की परीक्षा कहानी : राजा रानी की अनोखी कहानी (The Test of Dharma: A Unique Tale of a King and Queen)
बहुत समय पहले की बात है। हिमगिरी पर्वत की तलहटी में स्थित एक छोटा लेकिन समृद्ध राज्य था – सत्यलोक। इस राज्य पर राज करते थे एक अत्यंत धर्मपरायण, न्यायप्रिय और लोकप्रिय राजा – राजा वेदांत। उनकी पत्नी रानी यशोदा उतनी ही बुद्धिमान, दयालु और तपस्विनी थीं।
राजा वेदांत न केवल अपने साम्राज्य में न्याय को सर्वोच्च मानते थे, बल्कि हर निर्णय में धर्म के मार्ग पर चलते थे। वहीं रानी यशोदा अपने त्याग, संयम और सत्कर्मों के लिए राज्य में पूजनीय थीं।
👑 राज्य का सिद्धांत: “धर्म ही सर्वोपरि”
सत्यलोक की राजधानी में एक पत्थर का शिलालेख था जिस पर लिखा था:
“जिस दिन राजा और रानी धर्म से भटकेंगे, उस दिन सत्यलोक की नींव डगमगा जाएगी।”
इस पंक्ति को सुनकर हर नागरिक धर्म के पथ पर चलता था।
एक रहस्यमयी साधु की भविष्यवाणी
एक दिन, एक अज्ञात साधु राजमहल पहुँचे। उन्होंने राजा से कहा:
“हे राजन, एक वर्ष के भीतर आपकी और रानी की धर्म की कठोर परीक्षा होगी। अगर आपने धर्म से समझौता किया, तो सत्यलोक का विनाश निश्चित है।”
राजा और रानी ने साधु को प्रणाम किया और बोले, “हम सत्य और धर्म से कभी नहीं डिगेंगे।”
🌾 पहला संकट – किसान और फसल
कुछ महीनों बाद, राज्य में एक अकाल पड़ा। फसलें बर्बाद हो गईं, और अन्न का संकट छा गया।
एक गरीब किसान अपनी बेटी को लेकर राजदरबार पहुँचा। वह बोला,
“महाराज, मेरे पास अन्न नहीं है। अगर आप अनुमति दें तो मैं अपनी बेटी को महल में काम पर रख दूँ।”
रानी ने लड़की को देखा। वह बेहद छोटी और मासूम थी। रानी बोलीं, “बेटी को श्रम नहीं करना चाहिए। राज्य उसकी सहायता करेगा।”
राजा ने तुरंत आदेश दिया कि हर गरीब किसान को महीने भर का अन्न मुफ्त मिलेगा।
लेकिन, राज्य की कोषागार सीमित थी। मंत्रियों ने विरोध किया, “महाराज, अगर आप सबको मुफ्त देंगे तो युद्ध या आपातकाल में हमारे पास कुछ नहीं रहेगा।”
अब धर्म की पहली परीक्षा थी –
“क्या राजा जनता की भूख मिटाने के लिए राज्य की सुरक्षा को दांव पर लगाएँगे?”
राजा ने घोषणा की:
“प्रजा का जीवन ही राज्य की सुरक्षा है। अगर वे जीवित रहेंगे, तो राज्य बचेगा।”
और इस तरह धर्म की पहली परीक्षा पास हुई।
⚖️ दूसरी परीक्षा – पुत्र और न्याय
राजा वेदांत और रानी यशोदा के एकमात्र पुत्र राजकुमार देवांश बेहद साहसी और तेजस्वी थे।
एक दिन, उन्होंने राज्य की सीमा पर एक नागरिक को चोरी करते पकड़ लिया और उसे सजा दे दी – बिना न्यायालय की अनुमति के।
उस आदमी की पत्नी न्याय की गुहार लेकर राजदरबार पहुँची:
“राजकुमार ने मेरे पति को बिना सुनवाई के दंड दिया। क्या यह न्याय है?”
अब धर्म की दूसरी कठिन परीक्षा –
“क्या राजा अपने पुत्र को सज़ा देंगे या राजसी अहंकार के आगे न्याय को कुचल देंगे?”
रानी यशोदा ने कहा,
“हमारा पुत्र हो या कोई और – सभी के लिए एक समान नियम हैं।”
राजा ने अपने पुत्र को दरबार में बुलवाया और सभी के सामने माफी मंगवाई। इसके साथ ही राजकुमार को एक सप्ताह के लिए जेल भेज दिया गया – ताकि राज्य के नागरिकों को न्याय पर विश्वास बना रहे।
🧞♀️ तीसरी परीक्षा – मोह और माया
साल का अंतिम दिन था। राजा और रानी ध्यान में लीन थे। उसी समय एक मायावी स्त्री महल में पहुँची। उसने रानी यशोदा से कहा,
“मुझे माँ का रूप चाहिए, मैं संतानहीन हूँ। कृपया अपना पुत्र मुझे दान में दे दो – मैं उसे अच्छे संस्कार दूँगी।”
अब धर्म और ममता की सीधी टक्कर थी।
रानी ने आँख बंद की और प्रभु से मार्गदर्शन मांगा।
रानी ने कहा:
“माँ बनना केवल जन्म देना नहीं, पालन करना भी है। लेकिन अगर प्रभु की यही इच्छा है तो मैं पुत्र को त्यागने को तैयार हूँ।”
राजा भी मौन रहे।
तभी वह स्त्री अपने असली रूप में प्रकट हुई – वह वही साधु थे जो एक वर्ष पहले भविष्यवाणी कर गए थे।
उन्होंने कहा,
“आप दोनों ने धर्म, न्याय और ममता की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर सत्यलोक को बचा लिया। अब यह राज्य कई युगों तक उन्नति करेगा।”
निष्कर्ष
इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि:
- धर्म कभी आसान नहीं होता।
- सच्चा राजा वह है जो अपने निजी मोह से ऊपर उठकर न्याय करे।
- रानी वह है जो त्याग में भी प्रेम ढूँढे।
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धर्म की परीक्षा: राजा रानी की अनोखी कहानी (The Test of Dharma: A Unique Tale of a King and Queen)

The Test of Dharma: A Unique Tale of a King and Queen
Long ago, nestled near the Himalayas, was a small but prosperous kingdom called Satyalok. The realm was ruled by King Vedant, a just and virtuous ruler, and his wise and compassionate queen, Queen Yashoda.
Their guiding principle was:
“Dharma is Supreme – No relation, no attachment is above justice.”
The Prophecy of the Wandering Sage
One day, a mysterious sage arrived at the palace and proclaimed:
“O King, within one year you and your queen will face three tests of dharma. If you falter, Satyalok will collapse.”
The king and queen bowed respectfully, vowing never to abandon dharma.
🌾 First Test – The Farmer and the Famine
A massive famine hit the land. Crops failed, and hunger spread like wildfire. A poor farmer came to the court with his little daughter, begging for help.
The queen, moved by the child’s innocence, said,
“No child should work. We will help your family.”
But the treasury was already strained.
Now came the first test –
“Will the king risk the future security of the state for the immediate hunger of the people?”
King Vedant declared:
“A kingdom where people die of hunger is already lost. We shall feed our people.”
And the kingdom stood tall in compassion.
⚖️ Second Test – The Prince and Justice
Prince Devansh, their only son, once punished a thief without trial. The wife of the accused came seeking justice.
Now came the test of fatherhood vs justice.
King Vedant did the unthinkable –
He summoned his son, made him apologize publicly, and sentenced him to seven days in prison.
Justice triumphed over royal ego.
🧞♀️ Third Test – Love and Renunciation
On the final day of the year, a mystical woman arrived and asked the queen:
“I am barren. Give me your son. I seek motherhood.”
Queen Yashoda, teary-eyed, bowed and said:
“If this is your divine wish, I surrender my motherhood.”
Just then, the woman turned into the same sage.
He smiled and said:
“You both have passed the final test. Dharma will protect your kingdom for generations.”
🕊️ Moral of the Story
- True kingship is not in power but in justice.
- True motherhood is sacrifice.
- Dharma is not a word – it is a way of life.