कुत्ते की कहानी – मुंशी प्रेम चंद
गाँव के नुक्कड़ पर एक दिन एक कुत्ता टहलता हुआ आया। उसका नाम था काला। काला के शरीर पर बालों की एक झिली-झिली डाली थी, जैसे कोई बुजुर्ग ने अपने जीवन की सारी समस्याओं को सिर पर उठा रखा हो। काला इतना आलसी था कि अगर उसे किसी चीज़ के लिए दौड़ने के लिए कहा जाता, तो वो सीधे सोचता, “भाई, क्या वो चीज़ मेरे खाने से बेहतर है?”
गाँव में काला का मुख्य काम था मच्छरों का नाम काटना। गाँव के लोग उसे देखकर हमेशा पूछते, “भाई काले, कहां हो?” और वो बस अपनी अलसी आंखें खोलता और कहता, “अरे! कहीं नहीं… बस मच्छरों की गणना कर रहा हूं।”
एक दिन काला ने सोचा, “क्यों न मैं भी कुछ काम करूँ? चलो, किसी के घर जाकर भोजन मांगता हूं!” तो काला ने एक आदमी के घर का दरवाजा खटखटाया। आदमी ने दरवाजा खोला और काले को देखकर चौंक गया। “तुम्हें क्या चाहिए, काले?” आदमी ने पूछा।
काला बोला, “भाई, आज मुझे बहुत भूख लगी है। क्या तुम मुझे कुछ खाने को दोगे?”
आदमी ने हंसते हुए कहा, “अरे काले, तुमने पूरी ज़िन्दगी में कभी दौड़ लगाई है? तुम्हें खाना कैसे मिलेगा अगर तुम बस सोते रहोगे?”
काला ने उत्तर दिया, “अरे भाई, दौड़ने से क्या होता है? जब मैं गधा, ऊँट या बकरी सबको देखकर पड़ोसियों के घरों की आवाज़ सुनता हूं, तो मेरा पेट खुद-ब-खुद भर जाता है!”
इस बात पर आदमी खी-खी करके हंस पड़ा। “ठीक है! मैं तुम्हें एक टुकड़ा देता हूँ, लेकिन तुम पहले जोर से भौंको ताकि सबको पता चले कि तुम कितने ‘शानदार’ कुत्ते हो।”
काला ने सोचा, “यह तो मेरा मौका है!” उसने अपनी गहरी आवाज़ निकाली और भौंका, “भौं-भौं!” लेकिन जब भौंने की बारी आई, तो उसकी आवाज़ एकदम पिच पिच कर गई, जैसे किसी ने उसे जोर से खींच लिया हो।
सभी गांव वाले उस पर हंसने लगे। काला शर्मिंदा हुआ, लेकिन फिर भी वह खुशी-खुशी खाना लेकर वहाँ से चला गया। उसने सोचा, “कम से कम मुझे खाना मिल गया। भौंकने की तो कोई बात नहीं है!”
उस दिन के बाद से, काला ने एक नया रिसर्च शुरू किया। उसने यह पाया कि जब भी वह अपने गांव के बच्चों के पीछे दौड़ता था, तो उन्हें देखकर वे एक साथ चिल्लाते थे, “काला आ रहा है!” और वो खुद को सुपरहीरो समझने लगा। उसकी योजना यह थी कि वह अब केवल भौंकने का नहीं, बल्कि दौड़ने का भी अभ्यास करेगा।
यही कारण है कि आजकल जब कोई कुत्ता भौंकता है, तो गांव वाले हंसते हुए कहते हैं, “अरे, वो काला फिर से दौड़ने लगा!” और काला खुशी-खुशी अपनी दौड़ में लगा रहता है, क्योंकि उसने सिख लिया है कि बिना मेहनत के कुछ नहीं मिलता, चाहे वो खाना हो या सबकी हंसी।
तो दोस्तों, इस कुत्ते की कहानी से हमें क्या सीख मिलती है? मेहनत और थोड़ा सा हास्य, सब कुछ आसान बना देता है!