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कन्या पूजन का महत्व और सही विधि

Table of Contents

कन्या पूजन का महत्व – नवरात्रि का समापन पर्व

नवरात्रि के नौ दिनों की साधना का समापन कन्या पूजन (कन्या भोज) के साथ होता है।
यह केवल एक पूजा नहीं, बल्कि माँ दुर्गा की कृपा का साक्षात् अनुभव है।
माँ के नौ रूपों की आराधना करने के बाद, नवमी या अष्टमी तिथि को कन्या पूजन के द्वारा देवी को प्रसन्न किया जाता है।

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कन्या पूजन की उत्पत्ति कथा (Kanya Pujan Ki Katha)

पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया,
तो देवताओं ने उन्हें प्रसन्न करने के लिए पूजा की।
देवी ने कहा —

“मेरी आराधना तभी पूर्ण होगी जब मेरी शक्ति स्वरूप कन्याओं का पूजन करोगे।”

इसीलिए, नवरात्रि के अंत में बालिकाओं को देवी का रूप मानकर पूजना अनिवार्य माना गया।
कन्याएँ माँ दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक हैं —
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।


कन्या पूजन की सही विधि (Step-by-Step Puja Vidhi)

  1. तैयारी:
    सुबह स्नान कर साफ वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को सजाएँ।
  2. कन्याओं का आमंत्रण:
    नौ या सात (या पाँच) कन्याओं को और एक छोटे बालक (लंगूर) को बुलाएँ।
  3. पाद प्रक्षालन:
    कन्याओं के चरणों को गंगाजल या साफ जल से धोएँ — यह सबसे पवित्र कर्म है।
  4. तिलक और अक्षत:
    उनके माथे पर तिलक लगाएँ और अक्षत अर्पित करें।
  5. भोजन अर्पण:
    पारंपरिक रूप से पूरी, चने और हलवा का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
  6. दक्षिणा और उपहार:
    भोजन के बाद उन्हें वस्त्र, फल या दक्षिणा दें।
  7. आशीर्वाद प्राप्त करें:
    कन्याएँ माँ दुर्गा का साक्षात स्वरूप मानी जाती हैं,
    इसलिए उनके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना शुभ होता है।

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कन्या पूजन का आध्यात्मिक महत्व

कन्या पूजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है —
यह नारी शक्ति, पवित्रता और सृजन के सम्मान का प्रतीक है।

माँ दुर्गा के नौ रूप कन्या स्वरूप में हमारे जीवन में आते हैं —
वे हमें यह सिखाते हैं कि शक्ति, करुणा और साहस एक ही रूप में समाहित हैं।

यह कर्म हमें याद दिलाता है कि –

“जिस समाज में कन्या का सम्मान होता है, वहाँ देवी का वास होता है।”


पौराणिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

पौराणिक मान्यता

शास्त्रों के अनुसार, कन्या पूजन से देवी प्रसन्न होकर घर में सुख, धन, और समृद्धि का वरदान देती हैं।
कहा गया है —

“कुमारिका पूजनं देवीं तुष्टिमावहति निश्चितम्।”
(कुमारिका पूजन से देवी निश्चित रूप से प्रसन्न होती हैं।)

वैज्ञानिक दृष्टि

कन्या पूजन एक सामाजिक-सांस्कृतिक संतुलन का प्रतीक है।
इससे हम अगली पीढ़ी में सम्मान, समानता और सेवा का भाव जगाते हैं।
बालिकाओं को भोजन कराना पोषण और संस्कार दोनों देता है।


कन्या पूजन का सामाजिक और नैतिक संदेश

  1. नारी का सम्मान ही ईश्वर की पूजा है।
  2. समाज में समानता और स्नेह का प्रसार होता है।
  3. दान और सेवा का भाव मन को पवित्र बनाता है।

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कब करें कन्या पूजन?

कन्या पूजन अष्टमी या नवमी तिथि को किया जाता है।
ज्यादातर घरों में यह अष्टमी के दिन प्रातः किया जाता है,
और कुछ लोग इसे नवमी के दिन करते हैं, जब दुर्गा नवमी मनाई जाती है।


कन्या पूजन के मंत्र

“कुमारि कुमारि महाभागे, नमस्ते सुमनोहरे।
चन्द्रवदने चामुंडे, नारायणि नमोऽस्तुते।”

यह मंत्र कन्या रूप में देवी की स्तुति के लिए सर्वोत्तम है।


कन्या भोज में क्या परोसे?

  • पूरी – समृद्धि का प्रतीक
  • काला चना – ऊर्जा और स्थिरता का प्रतीक
  • सूजी का हलवा – मिठास और प्रसन्नता का प्रतीक
  • नारियल और फल – पवित्रता का प्रतीक

कन्या पूजन से मिलने वाले लाभ

  1. माँ दुर्गा की सम्पूर्ण कृपा प्राप्त होती है।
  2. सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
  3. घर में सुख-शांति, स्वास्थ्य और धन बढ़ता है।
  4. नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
  5. कर्मों की शुद्धि और आत्मिक संतोष मिलता है।

FAQs

Q1. कन्या पूजन किस दिन करना चाहिए?
👉 अष्टमी या नवमी तिथि को, सुबह के समय।

Q2. कितनी कन्याओं को पूजना चाहिए?
👉 नौ कन्याओं को, साथ में एक बालक (लंगूर)।

Q3. कन्या पूजन में क्या खिलाना चाहिए?
👉 पूरी, चना और हलवा — यह पारंपरिक प्रसाद है।

Q4. क्या बालिकाओं की उम्र मायने रखती है?
👉 हाँ, सामान्यतः 2 से 10 वर्ष की कन्याओं को पूजते हैं।

Q5. कन्या पूजन का असली संदेश क्या है?
👉 नारी शक्ति का सम्मान और सेवा भावना का संचार।


निष्कर्ष

कन्या पूजन नवरात्रि की साधना का अंतिम और सबसे शुभ चरण है।
यह केवल पूजा नहीं, बल्कि एक संस्कार है —
जो हमें याद दिलाता है कि देवी हमारे भीतर और हमारे समाज में हर कन्या में विद्यमान हैं।

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Kanya Pujan Significance and Puja Vidhi – The Final Day of Navratri

The final day of Navratri is celebrated with Kanya Pujan (Kumari Puja) — the worship of young girls symbolizing Goddess Durga’s nine forms.
This ritual marks the completion of Navratri and the blessing of divine energy in our homes.

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The Story Behind Kanya Pujan

When Goddess Durga defeated Mahishasura, the gods worshipped her to express gratitude.
The Goddess declared:

“My worship will be complete only when young girls are revered as my embodiment.”

Thus began the sacred tradition of Kanya Pujan — honoring the nine forms of the divine feminine through nine little girls.


Step-by-Step Kanya Pujan Vidhi

  1. Clean your home and prepare a decorated altar.
  2. Invite 5, 7, or 9 girls and one small boy (symbol of Hanuman).
  3. Wash their feet respectfully with clean water.
  4. Apply tilak and offer flowers.
  5. Serve traditional food — puri, black gram, and halwa.
  6. Give them gifts or dakshina.
  7. Touch their feet to seek blessings.

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Spiritual Meaning

Kanya Pujan represents the respect of feminine energy — the source of creation, purity, and compassion.
It reminds us that divinity exists in every girl, in every heart that nurtures.

“Where women are honored, there the gods rejoice.”


Scriptural and Scientific Perspective

  • Scriptural View: Worshipping young girls pleases Goddess Durga and fulfills wishes.
  • Scientific View: It promotes social harmony, respect for women, and encourages kindness in the next generation.

Kanya Pujan Food Offerings

  • Puri – abundance
  • Black gram – strength
  • Halwa – happiness
  • Fruits and coconut – purity

Benefits of Kanya Pujan

  • Blessings of Goddess Durga
  • Fulfillment of desires
  • Peace and prosperity at home
  • Removal of negative energies
  • Awakening of compassion and humility

FAQs

Q1: When should Kanya Pujan be performed?
👉 On Ashtami or Navami morning.

Q2: How many girls are worshipped?
👉 Usually nine, along with one boy.

Q3: What food is offered?
👉 Puri, chana, and halwa.

Q4: What is the true meaning of Kanya Pujan?
👉 Honoring feminine power and spreading love, equality, and gratitude.


Conclusion

Kanya Pujan completes the divine journey of Navratri.
It teaches us that Goddess Durga resides not only in temples but in every girl —
in every act of respect, care, and compassion.

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