भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में ही कई असुरों का वध कर लोककल्याण किया। ये सभी कथाएँ भागवत पुराण और अन्य ग्रंथों में मिलती हैं। आइए जानते हैं श्रीकृष्ण के बचपन की राक्षस-वध लीलाओं का क्रमबद्ध सारांश।
1. जन्म और गोकुल आगमन
- जन्म: कारागृह (मथुरा) में हुआ।
- वसुदेव जी ने यमुना पार कर कृष्ण को गोकुल पहुँचाया।
- नंद बाबा और यशोदा के यहाँ पालन-पोषण।
2. पुतना वध
कंस ने पुतना नामक राक्षसीनी को कृष्ण को मारने भेजा। वह सुंदर स्त्री का रूप लेकर आई और बालकृष्ण को गोद में उठाकर विषैले स्तनों से दूध पिलाने लगी। नन्हें कृष्ण ने दूध नहीं, बल्कि उसके प्राण ही चूस लिए। पुतना तड़पकर अपने भयंकर रूप में प्रकट हुई और मृत्यु को प्राप्त हुई। इस घटना से गोकुलवासियों को ज्ञात हुआ कि कृष्ण कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि दिव्य स्वरूप हैं। पुतना वध का संदेश यह है कि छल और कपट चाहे कितना भी मोहक रूप धारण कर ले, सत्य और ईश्वर के सम्मुख टिक नहीं सकता।
3. शकटासुर वध
शकटासुर नामक राक्षस बैलगाड़ी का रूप लेकर गोकुल आया। उस समय बालकृष्ण पालने में लेटे हुए थे और नामकरण का अवसर था। राक्षस ने गाड़ी पर कब्जा कर उसे खतरनाक बना दिया। तभी शिशु कृष्ण ने खेल-खेल में पैर से गाड़ी को इतनी जोर से लात मारी कि गाड़ी टूटकर बिखर गई और शकटासुर का वध हो गया। यह घटना दर्शाती है कि भगवान की शक्ति बाल्यावस्था में भी असीम होती है और साधारण से कार्य में भी वे असुरों का नाश कर सकते हैं।
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4. तृणावर्त वध
तृणावर्त वायु का रूप लेकर आया और बालकृष्ण को आकाश में ले गया। वह ऊँचाई पर जाकर सोच रहा था कि अब कृष्ण का अंत कर देगा। लेकिन कृष्ण उसके गले में अचानक इतने भारी हो गए कि वह उड़ नहीं सका और नीचे गिर पड़ा। गिरते ही उसका प्राण निकल गया। गोकुलवासी चिंतित थे परंतु उन्होंने देखा कि कृष्ण सुरक्षित और प्रसन्न हैं। तृणावर्त वध यह सिखाता है कि जो भी शक्ति अहंकार में भरकर निर्दोषों को कष्ट देती है, वह अंततः अपने ही भार से नीचे गिरती है।
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5. बचपन की लीलाएँ
- मक्खन चोरी, उखल बंधन, यमलार्जुन वृक्ष उद्धार।
- यहाँ कोई राक्षस वध नहीं, लेकिन यह भी गोकुल की प्रमुख कथा है।
6. वात्सासुर वध
कंस ने वात्सासुर नामक राक्षस को भेजा, जिसने बछड़े का रूप धारण किया। वह ग्वालबालों के बीच घुसा और उन्हें मारने का प्रयत्न करने लगा। कृष्ण ने तुरंत उसकी पहचान कर ली। उन्होंने उसके पैर पकड़कर घुमा कर जमीन पर पटक दिया और उसका वध कर दिया। ग्वालबाल सुरक्षित हो गए और सबने खुशी मनाई। वात्सासुर वध से यह शिक्षा मिलती है कि छल करने वाले चाहे कितने भी भोले स्वरूप में आएं, भगवान की दृष्टि से छिप नहीं सकते।
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7. बकासुर वध
बकासुर ने विशाल सारस पक्षी का रूप धारण किया और कृष्ण को निगलने का प्रयास किया। ग्वालबाल भयभीत हो गए, लेकिन कृष्ण शांत रहे। कृष्ण ने उसकी चोंच को इतनी ताकत से फाड़ा कि वह वहीं मृत हो गया। ग्वालबालों ने कृष्ण की जयजयकार की। यह कथा दर्शाती है कि अधर्म चाहे कितना भी विशाल और भयानक क्यों न लगे, सत्य की छोटी-सी किरण भी उसे नष्ट कर सकती है। बकासुर वध में यह संकेत है कि भगवान अपने भक्तों को हर परिस्थिति में सुरक्षित रखते हैं।
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8. अघासुर वध
अघासुर एक विशाल अजगर था जिसे कंस ने भेजा। उसने अपना मुँह इतना बड़ा किया कि सभी ग्वालबाल उसमें चले गए। कृष्ण भी उनके साथ भीतर प्रवेश कर गए। अंदर जाकर कृष्ण ने अपना शरीर इतना विशाल कर लिया कि अजगर का दम घुट गया और वह मर गया। सभी ग्वालबाल सुरक्षित बाहर आ गए। यह घटना अघासुर वध कहलाती है। इससे पता चलता है कि जब भक्त विपत्ति में फँस जाते हैं, तब भगवान स्वयं उनके साथ संकट में प्रवेश करते हैं और उन्हें बचाकर असुर का नाश करते हैं।
9. धेनुकासुर वध
धेनुकासुर गधे का रूप धारण कर तालवन में रहता था और किसी को फल खाने नहीं देता था। जब कृष्ण और ग्वालबाल वहाँ गए, तो धेनुकासुर ने हमला किया। बलराम ने उसके पैर पकड़कर उसे जमीन पर पटक दिया और वह मर गया। कृष्ण ने उसके अन्य साथी असुरों का वध किया। धेनुकासुर वध यह सिखाता है कि जो भी लोभी और हठी होकर दूसरों के अधिकार छीनता है, उसका अंत निश्चित होता है। यह कथा बलराम की शक्ति और कृष्ण की कृपा दोनों को दर्शाती है।
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10. प्रलम्बासुर वध
प्रलम्बासुर ग्वालबाल बनकर खेल में सम्मिलित हो गया। खेल के नियम के अनुसार उसे बलराम को अपनी पीठ पर बैठाकर दूर ले जाना था। उसने सोचा बलराम को मार दूँगा, परंतु बलराम ने उसे पहचान लिया। जैसे ही उसने अपने असली भयानक रूप में आकर बलराम पर हमला किया, बलराम ने उसे एक जोरदार मुक्का मारा और उसका वध कर दिया। प्रलम्बासुर वध से संदेश मिलता है कि छल और विश्वासघात करने वाला अंततः अपने ही कर्मों से नष्ट हो जाता है।
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11. कालिय नाग दमन
यमुना नदी में कालिय नामक विषैला नाग रहता था। उसकी वजह से यमुना का जल पीने योग्य नहीं था। कृष्ण ने यमुना में कूदकर नाग से युद्ध किया। उन्होंने उसके फनों पर नृत्य किया और उसे पूरी तरह पराजित कर दिया। अंत में कालिय की पत्नियों ने प्रार्थना की तो कृष्ण ने उसे क्षमा कर दिया और यमुना छोड़कर जाने का आदेश दिया। यह कथा वध नहीं, बल्कि दमन कहलाती है। कालिय दमन यह दर्शाता है कि दुष्ट शक्तियों का भी सुधार हो सकता है यदि वे भगवान की शरण में आ जाएं।
12. व्योमासुर वध
व्योमासुर राक्षस ग्वालबालों का अपहरण कर उन्हें गुफाओं में कैद करता था। एक दिन जब वह पुनः बच्चों को पकड़ने आया, तो कृष्ण ने उसे तुरंत पहचान लिया। उन्होंने उससे युद्ध किया और जमीन पर पटककर उसका वध कर दिया। सभी ग्वालबाल सुरक्षित वापस आए। व्योमासुर वध यह सिखाता है कि जो भी मासूमों को धोखे से बंधन में डालता है, उसका अंत अवश्य होता है। भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और अधर्म को मिटाते हैं।
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13. गोवर्धन लीला
- इन्द्र का अहंकार तोड़ने हेतु कृष्ण ने गोवर्धन उठाया।
- यहाँ कोई राक्षस वध नहीं, पर यह प्रमुख वृंदावन-लीला है।
14. मथुरा प्रस्थान और कंस वध की तैयारी
- अक्रूरजी कृष्ण और बलराम को लेकर मथुरा गए।
- यहीं से आगे कंस वध और द्वारका लीला की शुरुआत होती है।
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FAQs
Q1. श्रीकृष्ण ने बचपन में कितने राक्षसों का वध किया?
👉 लगभग 10–11 प्रमुख राक्षसों का वध (कुछ बलराम द्वारा भी)।
Q2. क्या कालिय नाग का वध हुआ था?
👉 नहीं, कृष्ण ने उसे दमन कर क्षमा किया और यमुना से विदा किया।
Q3. श्रीकृष्ण का पहला राक्षस वध कौन सा था?
👉 पुतना वध।
Q4. मथुरा जाने से पहले कृष्ण की सबसे बड़ी लीला कौन-सी थी?
👉 गोवर्धन लीला और इन्द्र का अहंकार भंजन।