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मथुरा प्रस्थान और कंस वध की तैयारी – Shri Krishna Mathura Prasthan Story

मथुरा प्रस्थान और कंस वध की तैयारी – Shri Krishna Mathura Prasthan Story in Hindi

गोकुल से विदाई – विरह का आरंभ

वृंदावन में आनंद और प्रेम का वातावरण था।
ग्वालबाल, गोपियाँ, नंदबाबा और यशोदा माता —
सबका जीवन श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से भरा हुआ था।

परंतु एक दिन मथुरा से अक्रूर जी आए।
वे कंस के मंत्री थे, पर हृदय से श्रीकृष्ण के परम भक्त।
उन्होंने नंदबाबा से कहा —
“कंस ने ब्रज के दोनों युवकों, कृष्ण और बलराम, को मथुरा बुलाया है।
वह उन्हें धनुष यज्ञ में आमंत्रित करना चाहता है।”

परंतु यह सब एक षड्यंत्र था —
कंस जानता था कि वही कृष्ण उसके जीवन का अंत करेंगे,
इसलिए वह उन्हें छल से बुला रहा था।


यशोदा और गोपियों का विलाप

जब यह समाचार फैला,
पूरा वृंदावन दुःख में डूब गया।
गोपियाँ रोती हुई बोलीं —
“श्याम! हमारे प्राण तुम्हारे बिना कैसे रहेंगे?”

माता यशोदा ने कृष्ण को गले लगाते हुए कहा —
“लाल, मथुरा मत जाओ। वहाँ कंस दुष्ट है।
कहीं वह तुम्हें हानि न पहुँचाए।”

कृष्ण ने उनके आँसू पोंछते हुए कहा —
“मैय्या, अब समय आ गया है कि अधर्म का अंत हो।
आपका लाला सदा आपके हृदय में रहेगा।”


मथुरा की यात्रा का प्रारंभ

अक्रूर जी रथ लेकर तैयार हुए।
कृष्ण और बलराम ने नंदबाबा और यशोदा के चरण स्पर्श किए,
और सबको प्रणाम करके मथुरा की ओर चल पड़े।

रथ जैसे-जैसे आगे बढ़ा,
वृंदावन के वृक्ष झुककर उन्हें आशीर्वाद देने लगे।
गोपियाँ दूर तक रथ के पीछे दौड़ती रहीं,
कृष्ण की बांसुरी की मधुर ध्वनि हवा में गूँजती रही।

यमुना किनारे पहुँचकर अक्रूर जी ने स्नान किया।
वहीं उन्होंने जल में श्रीकृष्ण और बलराम का विष्णु और शेषनाग रूप देखा।
वे स्तब्ध रह गए —
“हे प्रभु! आप ही सृष्टि के पालनहार हैं।”


मथुरा का दृश्य

मथुरा पहुँचने पर दोनों ने देखा —
हर ओर भीड़, व्यापार, संगीत और शोर।
परंतु लोगों के चेहरे भय से भरे हुए थे।
कंस के अत्याचार से नगरवासी दुखी थे।

कृष्ण ने मन ही मन कहा —
“अब समय आ गया है।
मथुरा को भय से मुक्त कराना ही हमारा धर्म है।”


पहली मुठभेड़ – धनुष तोड़ लीला

अगले दिन, यज्ञ स्थल पर एक विशाल शिव धनुष रखा था।
कंस ने आदेश दिया था कि कोई उसे छू भी न सके।
पर कृष्ण मुस्कुराते हुए वहाँ पहुँचे,
और सहजता से धनुष को उठाया।
धनुष दो हिस्सों में टूट गया।

चारों ओर गड़गड़ाहट हुई।
नगर के सैनिक दौड़े, पर कोई उन्हें रोक न सका।
यह संकेत था — कंस का अंत निकट है।


कंस वध की तैयारी

कृष्ण और बलराम को अगले दिन मल्लयुद्ध में भाग लेना था।
कंस ने अपने दो बलशाली पहलवान — चाणूर और मुष्टिक — को तैयार किया।
वह मन ही मन सोच रहा था —
“कल ये दोनों ग्वाले मेरे मल्लों के हाथों मर जाएँगे।”

पर उसे क्या पता था कि
वह स्वयं अपने अंत की ओर बढ़ रहा है।

कृष्ण रातभर ध्यानमग्न रहे।
उन्होंने यशोदा, नंदबाबा, और वृंदावन की गोपियों को याद किया।
बलराम ने कहा —
“भैया, अब समय है।
कल अधर्म का अंत निश्चित है।”

कृष्ण ने मुस्कुराकर कहा —
“हाँ दाऊ, अब सत्य की विजय का सूर्योदय होगा।”


आध्यात्मिक अर्थ

  • गोकुल से मथुरा की यात्रा आत्मा के आध्यात्मिक पथ का प्रतीक है —
    जहाँ हमें मोह और प्रेम से आगे बढ़कर कर्तव्य निभाना होता है।
  • अक्रूर भक्त का प्रतिनिधित्व करते हैं,
    जो भगवान के संदेशवाहक बनकर भक्ति और धर्म के सेतु हैं।
  • कृष्ण का मथुरा जाना यह दर्शाता है कि ईश्वर तब प्रकट होते हैं जब अधर्म चरम पर हो।
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जीवन की शिक्षा (Moral of the Story)

  1. जब जीवन में जिम्मेदारी पुकारे, तो भावनाओं से ऊपर उठना पड़ता है।
  2. सच्चा धर्म हमेशा न्याय और करुणा में निहित है।
  3. हर परिवर्तन, चाहे कितना भी दुखद क्यों न हो, नए आरंभ का संकेत होता है।
  4. भगवान सिखाते हैं — “कर्तव्य ही भक्ति का सर्वोच्च रूप है।”

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Krishna’s Journey to Mathura and Preparation for Kansa’s End

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Krishna’s Departure to Mathura and Preparation for Kansa Vadh – The Turning Point in Krishna’s Life

Farewell to Gokul

The entire village of Vrindavan was in tears.
Krishna, the beloved of everyone, was leaving for Mathura.
Akrura, Kansa’s minister and a great devotee, had come with the royal summons.

Though Kansa invited Krishna for a “festival,”
it was actually a trap to end His life.


The Pain of Separation

Yashoda wept endlessly, saying —
“My son, don’t go to Mathura. That wicked Kansa will harm you.”
Krishna smiled gently —
“Mother, the time has come to destroy evil.
Your Krishna will always live in your heart.”


Journey to Mathura

Akrura drove the chariot through the forest paths.
Gopis ran behind, crying and praying for Krishna’s safety.
At the banks of Yamuna, Akrura witnessed a divine vision —
Krishna as Lord Vishnu, and Balarama as Sheshnag.

He folded his hands and said —
“O Lord, You are the protector of the world.
This journey is the dawn of Dharma.”


Arrival in Mathura

The city of Mathura was grand yet gloomy.
People were rich in gold but poor in peace.
Kansa’s tyranny had stolen their smiles.

Krishna vowed —
“I will restore joy to this city once again.”


The Bow-Breaking Episode

At the grand arena, Krishna lifted the giant Shiva bow
and broke it effortlessly into two pieces.
The guards attacked, but Krishna defeated them all.
This was the first sign of Kansa’s downfall.


The Night Before the Battle

That night, Kansa prepared his wrestlers — Chanura and Mushtika.
But Krishna sat in meditation, calm and divine.
Balarama said —
“Brother, tomorrow the world will witness truth’s victory.”
Krishna replied —
“Yes, Dāu. Tomorrow, fear will fall and Dharma will rise.”


Spiritual Meaning

  • Gokul to Mathura symbolizes the soul’s journey from attachment to duty.
  • Akrura stands for faith and surrender.
  • Kansa represents ego and tyranny — destined to perish when truth awakens.

Moral Lessons

  • Duty above emotion leads to divine success.
  • When God’s purpose unfolds, destiny itself bows.
  • Every ending hides a new beginning.
  • Faith turns pain into purpose.


FAQs

Q1: अक्रूर कौन थे?
वे कंस के मंत्री थे, पर श्रीकृष्ण के महान भक्त और धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे।

Q2: श्रीकृष्ण ने मथुरा क्यों प्रस्थान किया?
क्योंकि कंस ने उन्हें धनुष यज्ञ के बहाने बुलाया था, पर यह उनके अंत का संकेत बना।

Q3: इस कथा से क्या शिक्षा मिलती है?
जब अन्याय और अधर्म बढ़ जाता है, तब भगवान स्वयं धर्म की रक्षा के लिए कार्य करते हैं।

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