(Shree Ram Ki Khania | Spiritual Stories)
प्राचीन काल की बात है, जब भगवान श्री राम अयोध्या में राज कर रहे थे। उनकी प्रजा बहुत सुखी और संतुष्ट थी। उनके न्याय और प्रेम के कारण सभी लोग उन्हें भगवान के रूप में पूजते थे। लेकिन श्री राम सदा अपने भक्तों की परीक्षा लेते थे और उनकी भक्ति की सच्चाई परखते थे।
मिठाई वाले की भक्ति
अयोध्या में एक वृद्ध मिठाई वाला था, जिसका नाम माधव था। वह दिनभर मिठाइयाँ बनाता और बेचता था। उसकी मिठाइयों का स्वाद पूरे नगर में प्रसिद्ध था। लेकिन माधव के लिए मिठाई बेचना सिर्फ व्यवसाय नहीं था; वह इसे अपनी सेवा मानता था। जब भी कोई निर्धन व्यक्ति आता, वह उसे प्रेम से मिठाई खिलाता और कहता,
“भगवान श्री राम का प्रसाद समझकर इसे ग्रहण करो।”
माधव के मन में श्री राम के प्रति अपार भक्ति थी। वह प्रतिदिन अपने मुनाफे का एक हिस्सा मंदिर में दान कर देता और शेष धन से जरूरतमंदों की सेवा करता।

भगवान की परीक्षा
एक दिन भगवान श्री राम ने सोचा, “चलो, माधव की भक्ति की परीक्षा ली जाए।” वे एक साधारण ब्राह्मण का वेश धारण करके माधव की दुकान पर पहुँचे।
भगवान ने कहा, “बाबा, मैं बहुत भूखा हूँ, लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं। क्या तुम मुझे मिठाई खिला सकते हो?”
माधव ने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे महात्मा जी, मिठाई कोई वस्तु नहीं, यह प्रेम का प्रतीक है। इसे प्रसाद समझकर ग्रहण कीजिए।” यह कहकर माधव ने भगवान को ताजे लड्डू परोस दिए।
श्री राम ने मिठाई खाई और बोले, “बाबा, तुम इतने प्रेम से मिठाई बाँटते हो, लेकिन यदि तुम्हें कोई धनवान ग्राहक अधिक पैसे देकर सारी मिठाई खरीदना चाहे, तो तुम क्या करोगे?”
माधव हँसते हुए बोले, “धन तो आता-जाता रहता है, लेकिन भगवान श्री राम की कृपा सबसे बड़ी है। मैं केवल उनकी सेवा करता हूँ।”
भगवान श्री राम यह सुनकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने अपने वास्तविक रूप में प्रकट होकर कहा, “माधव, तुम्हारी निस्वार्थ भक्ति से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। आज से तुम्हारी मिठाइयों में मेरी कृपा बनी रहेगी, जिससे जो भी इसे खाएगा, वह सुख और शांति का अनुभव करेगा।”
सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति धन या प्रसिद्धि से नहीं, बल्कि निस्वार्थ प्रेम और सेवा से प्राप्त होती है। यदि हम श्री राम के नाम को प्रेम से जपते और दूसरों की सहायता करते हैं, तो वे हमें अपनी कृपा से अवश्य नवाजते हैं।